मैं भारत हूं

मैं अभी जिंदा हूं साहब
 मैं भारत का नागरिक हूं....
जिंदा हो तो जिंदा रहने का एहसास जरूरी है, 
यह कैसा समय है कि हर सांस पर आस जरूरी है।
अंधेरी कोठरी में बैठने वालों को अंधेरा मिलता है,
जो रोशनी के तलबगार हैं,
उन्हें बाहर निकलना पड़ता है ।।अगर जिंदा हो तो अपनी हाजिरी जिंदो में लगवाओ वरना सरकार तो तुम्हें मुर्दा साबित करने को तैयार है।।
बड़े बुजुर्गों से सुनते आ रहे हैं कि 
वक्त कभी किसी का एक जैसा नहीं रहता कभी कोई राजा तो कभी कोई रंक नहीं रहता ।।
परंतु आज थोड़ा सा वक्त बदल रहा है,ऊंची गद्दीयो पर बैठे लोग नीचे वालों को संदेह की निगाह से देखते हैं,उन्हें कमजोर समझते हैं दबाने का प्रयास करते हैं ।और ऐसा नहीं है कि आज का मनुष्य इन ऊंची गद्दी वालों से दब नहीं रहा है जी भी रहा है रो भी रहा है परंतु किसी को दिखाना नहीं चाहता ।हर व्यक्ति के सीने में दर्द है लेकिन हर व्यक्ति अपने दर्द को छुपाए घूम रहा है ।
मैंने यह भी सुना है कि अगर कोई जख्म या दर्द ज्यादा बढ़ता है तो वह नासूर भी बन जाता है ।
मैंने अपने पिछले लेख में कर्नल गद्दाफी का जिक्र किया था वह एक तानाशाह थे उसके राज में बिजली पानी मेडिकल सुविधाएं सब मुफ्त दी जाती थी।
 ऐसा भी मानना है की कर्नल गद्दाफी अपने देश के हर नागरिक को मुफ्त में मकान देना चाहते थे और उन्होंने देने का प्रयास भी किया खैर यह बात तो रही कर्नल गद्दाफी की अब मैं अपने देश की ही बात करता हूं हमारे देशवासियों का दुर्भाग्य देखिए मजदूर  पैदल चलकर  अपने गंतव्य तक पहुंचना चाहते हैं  भूख,प्यास और जिल्लत  की जिंदगी  के मारे मजदूर कभी सड़क पर दुर्घटना में मर जाते हैं तो कभी  ट्रेन  उन्हें काट कर चली जाती है  वही पैसों वालों के लिए  सरकार  विदेशों में  जहाज भेज रही है  और उन्हें क्वारंटीन करने के लिए  फाइव स्टार होटल बुक कर रही है  इसी देश में दो मेल का  यह बर्ताव क्यों।
वही हम आम नागरिक हर उस चीज का टेक्स् सरकार को देते हैं जैसे खाने का सामान लाओ तो जीएसटी दो,कार खरीदो तो जीएसटी दो,कार सड़क पर चलाओ तो टोल टैक्स दो और रोड टैक्स दो,कार खरीद कर लाओ तो जीएसटी देना पड़ता है बिजली का बिल दो तो उसमें सर चार्ज अलग से देना पड़ता है पानी का बिल दिल भी यहां भरना पड़ता है दिल्ली में घुसे तो एमसीडी को चार्ज देना पड़ता है कभी-कभी मुझे यहां ऐसा प्रतीत होता है की हम लोग यहां किराएदार हैं और किराए पर ही रहते हैं सरकार  हम से किराया लेने के बावजूद भी हमें क्या सुविधाएं देती है ।
कभी नोटबंदी करके हमें लाइन में लगा देती है तो कभी जीएसटी लगाकर हमें लाइन में लगा देती है और कभी  खाने की लाइन में  लगा देती है।
बीमारी दूसरे देश से आई गलती सरकार की और भुगते हम,
मैं यहां सरकार की गलती भी आपको बता देता हूं,सर्वविदित है की है बीमारी चाइना से आई थी चाइना से कोई आदमी जब यहां आया या किसी भी देश से व्यक्ति यहां आया था और जब पहला मरीज हमारे देश में मिला तभी सरकार ने कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाया कहीं नमस्ते ट्रंप के चक्कर में तो सरकार ने ढील नहीं दी।जब देश में पहला मरीज मिला था
अगर सरकार उसी समय ठोस कदम उठा लिया होता तो आज लॉक डाउन की आवश्यकता होती ना देश का आम नागरिक भूखा मरता ना सड़कों पर पुलिस के डंडे खाता ना क्वारंटीन के नाम पर प्रताड़ना झेलनी पड़ती ।
अगर मैं टैक्स पेयर हूं मैं टैक्स देता हूं तो मैं क्यों भुगतू यह सब चीजें क्यों नहीं सरकार मुझे सारी सुविधाएं देती सरकार अपना फर्ज समझे उसके लिए मुझे यह साबित करना पड़ेगा कि 
मैं जिंदा हूं मैं भी भारत का नागरिक हूं 
सरकार जो चाहे वो कर ले परंतु कुछ तो दायरा हो जिसमें मुझे भी बोलने का अधिकार हो ।
क्योंकि मैं जिंदा हूं भारत का नागरिक हूं सरकार अपने आदेश मेरे ऊपर थोप ले परंतु उसके बदले में मुझे भी तो कुछ दे ।
क्योंकि मैं जिंदा हूं और भारत का नागरिक है 
आज अगर मैं भूखा हूं तो मैं लाइन में क्यों लगू सरकार मुझे मेरे घर पर खाना क्यों ना दे सरकार को मुझे खाना देना चाहिए क्योंकि सरकार की गलती की सजा भुगत रहा हूं और मैं बोलता हूं कि 
मैं जिंदा हूं मैं भारत का नागरिक हूं
आए दिन सरकार अपने फैसले बदल देती है उसके बदले में सरकार मुझे क्या देती है सरकार मुझे देती है हिंदू मुस्लिम अमीर गरीब छोटे बड़े का अंतर और भुखमरी बेरोजगारी जिल्लत भरी जिंदगी अब मैं यह सब चीजें क्यों सहन करूं क्योंकि मैं देश के लिए समर्पित नागरिक हूं मैं सरकार को टैक्स देता हूं सरकार अच्छे काम करें तो मैं सरकार जिंदाबाद के नारे लगाता हूं सरकार कहे तो मैं थाली बजाता हूं चाहे फिर उसी दिन हमारे 17 सैनिक क्यों न शहीद हो गए हो लेकिन सरकार का आदेश है तो मुझे मानना ही पड़ेगा,सरकार कोरोना वायरस से लड़ रहे डॉक्टर और पुलिसकर्मियों के हौसला अफजाई के लिए मुझसे मोमबत्ती जलवाने को कहें तो मैं मोमबत्ती जलाउं चाहे उस दिन कश्मीर में कितने ही सैनिक क्यों ना शहीद हुए हो।मैंने फिर भी सरकार की बात मानी और मोमबत्ती के साथ टॉर्च भी जलाया जब मैं भारत का नागरिक सरकार की बातें मान रहा हूं तो फिर सरकार को भी मेरी बात माननी पड़ेगी मेरे खाने पीने उठने बैठने आने जाने का इंतजाम सरकार को करना पड़ेगा मैं पैदल पटरियों पर क्यों चलू,क्योंकि यह बीमारी मुझे सरकार ने दी है तो फिर क्यों भुगतू।
क्योंकि मैं जिंदा हूं,मैं भारत का नागरिक हूं,मुझे बोलने का अधिकार है मुझे अपने अधिकार पाने का अधिकार है,तो सरकार मुझे मेरा अधिकार दे और मेरे पेट की आग को बुझाए ।
सरकार अपना फर्ज निभाएं मैं तो अपना फर्ज निभा ही रहा हूं क्योंकि 
मैं जिंदा हूं और 
भारत का नागरिक हूं।
जगत सिंह अवाना 
संपादक 
दैनिक संरजना टाइम