गौतमबुधनगर अछूता !

गौतम बुध नगर में भी पंचायती राज व्यवस्था प्रभावी करने की आवश्यकता है l यदि इतिहास के पन्नों को पलटे तो पता चलता है कि देश में 24 अप्रैल 1993 को नया पंचायत राज एक्ट लागू किया गया थाl जिसके द्वारा पंचायतों को संवैधानिक अधिकार दिए गए और उनके चुनाव विधानसभा व लोकसभा की तरह नियमित किए गए। इस एक्ट का मसौदा राजीव गांधी अपने प्रधानमंत्रित्व काल में लेकर आए थे। हालांकि इसे लागू उनकी मृत्यु के 2 वर्ष बाद नरसिंह राव के कार्यकाल में किया गया।
   पंचायतों का स्वरूप भारतवर्ष में बहुत प्राचीन काल से मिलता है। ऋग्वेद काल से पहले सिंधु घाटी की सभ्यता में भी पंचायतों का अस्तित्व पाया जाता है। पंचायतों के वर्तमान स्वरूप की कल्पना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और समाजवाद के पुरोधा डॉ राम मनोहर लोहिया ने की थी। गांधीजी जहां ग्राम स्वराज की बात करते थे वहीं लोहिया चौखंबा राज का नारा देते थे। उनका मानना था कि देश को चार स्तरीय सरकारों द्वारा चलाया जाना चाहिए। केंद्र सरकार, राज्य सरकार, जिला पंचायत और ग्राम पंचायत उनके चौखंबा राज के चार खंभे थे। 
    लोकतंत्र में ग्राम स्तरीय राजनीति का विशेष महत्व है। कम से कम भारत जैसे विशाल देश में तो यह अत्यंत ही आवश्यक है। क्योंकि 140 करोड़ की जनसंख्या पूरी करने जा रहे विशाल देश का नेतृत्व केंद्र में बैठकर अथवा राज्यों की राजधानियों से ठीक से नहीं किया जा सकता। ग्राम पंचायत व जिला पंचायत के चुनाव होने से जनता को न केवल राजनीतिक प्रशिक्षण मिलता है बल्कि उनके मुद्दे भी राजनीति के केंद्र में आते हैं।
  उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के महत्वपूर्ण जनपद गौतम बुद्ध नगर में कानूनी पैंतरेबाजी की वजह से लंबे समय से पंचायती राजव्यवस्था हाशिए पर है l इस बारे में शासन प्रशासन व जन प्रतिनिधियों के साथ ही जागरूक नागरिकों को भी मंथन चिंतन मनन करना होगा ताकि उनके मथने के बाद पंचायती राज व्यवस्था प्रभावी होो सके