हालात बदतर से बेहतर हैं

सुना है आज कड़कड़डूमा कोर्ट में वकीलों ने एक पुलिसकर्मी को पीट दिया। शनिवार को तीस हजारी कोर्ट में हुए बवाल के क्रम में ऐसी मामूली घटना हो जाना स्वाभाविक है। पुलिस एक बल है। उसके भ्रष्ट आचरण वाले पक्ष से ध्यान हटाएं तो कमोबेश हर समस्या का समाधान पुलिस से ढूंढा जाता है।चोरी से लेकर हत्या तक और बिजली के पोल टूटने से लेकर सांप निकल आने तक प्राथमिक जिम्मेदारी पुलिस की है। वकालत के पेशेवरों और पुलिस का चोली दामन का साथ होने के बावजूद दोनों में अक्सर टकराव की नौबत आती रहती है। ऐसा क्यों होता है? वकील किस बात की धौंस जमाना चाहते हैं और पुलिस किस अकड़ में रहती है? क्या यह बर्चस्व की जंग है?ये सभी सवाल जंगली जीवन से जुड़े हैं। सभ्य नागरिक समाज सहकारिता के सिद्धांत पर आधारित होता है। पुलिस फोर्स में सिपाही आदि न्यूनतम शिक्षित हो सकते हैं परंतु वकील तो कानून का ज्ञाता होता है और कानून हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं है,इसे वकीलों से बेहतर कौन जानता है। जहां तक बर्चस्व का प्रश्न है तो दोनों के कार्यक्षेत्र में कोई बहुत ज्यादा दखलंदाजी एक दूसरे की नहीं है। हां दोनों के पेशे में आक्रामकता स्वाभाविक गुण है परंतु इसे एक दूसरे के विरुद्ध आजमाने की क्या जरूरत। विश्व भर में अदालतें सबसे शांत युद्ध स्थल हैं जहां हर रोज हर कोई लड़ने आता है परंतु यह लड़ाई शारीरिक नहीं होती। वकीलों और पुलिस को अदालतों की इस मर्यादा का ध्यान रखना चाहिए।

साभार 

(नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)