आज शाम एक मित्र सह रिश्तेदार का फोन आया। बहुत घबराये हुए थे। हाय-हेलो के बगैर उन्होंने कहा,-भाईसाब जल्दी आ जाओ। पुत्रवधू को लड़का हुआ है, उसे सांस नहीं आ रहा, डॉक्टर उसे किसी हायर सेंटर भेजने के लिए कह रहे हैं। मैंने उन्हें ढांढस बंधाते हुए कहा कि डॉक्टर से ठीक से बात समझो फिर देखेंगे। फोन रख दिया गया। कुछ देर बाद मैंने अपनी ओर से फोन लगाकर हाल पूछा तो वह सज्जन सामान्य थे।बोले,-भाईसाब गलतफहमी हो गई थी, लड़की हुई है। मैंने पूछा,मगर नवजात का हाल क्या है तो उन्होंने कहा,-कुछ नहीं भाईसाब, लड़की को सांस नहीं आ रहा है परंतु चिंता की कोई बात नहीं है। मैं कुछ दशक पूर्व की परिस्थितियों में झांकने लगा। तब लड़कियों की सांस बंद कर दी जाती थी, आज वैसी स्थिति नहीं है, बेहद परिवर्तन आया है, बेटी बचाओ का नारा गगनभेदी हो चला है,बेटा बेटी एक समान का नारा कुछ कम दम मारकर नहीं लगाया जा रहा है।बस अब उनकी सांसों की फ़िक्र नहीं रही।
AABHAAR
(नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा)