नोएडा अत्याधुनिक शहर नोएडा मे कांग्रेस के अधिकांश नेताओं को फोटो फोबिया हो गया है। इसका जीता जागता प्रमाण तब मिला जब कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी के पति रॉबर्ट वाड्रा इलाज के लिए यहां के मेट्रो अस्पताल पहुंचे। रॉबर्ट वाड्रा अस्पताल में अपनी बीमारी का इलाज कराने के लिए आए थे। लेकिन जैसे ही स्थानीय कुछ कांग्रेसियों को इनकी भनक लगी तो उन्होने आव देखा ना ताव। मेट्रो अस्पताल पर धावा बोल दिया। हालत यह हो गई कि कई प्रदेश स्तर के नेताओं को भी स्थानीय नेताओं ने इसकी जानकारी दे दी।
दरअसल अस्पताल वो स्थान होता है जहां राजनीति नहीं होनी चाहिए। यहां कोई भी मरीज सकून से अपना इलाज कराने लिए आता है। डाक्टरों की भी सलाह होती है कि मरीज को कम से कम लोगों को मिलना चाहिए। इससे मरीज को तो फायदा होता ही है आस पडौस में इलाज कराने वाले मरीजों को भी सहूलियत रहती है। ये बात आम आदमी की समझ में आराम से आ सकती है लेकिन नेताओं को इस बात से कोई सरोकार नहीं है।
अब नोएडा के कांग्रेस कार्यकर्ताओं की ही ले लीजिए। ईडी सहित कई एजेंसियों की जांच में बुरी तरह फंस चुके रार्बट वाड्रा को बैक पैन की षिकायत हुई। उन्होने दिल्ली से सटे नोएडा को अपने इलाज के लिए इसलिए चुना कि यहां वे सुकून से आराम कर सकेंगे। लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं को फोटो फोबियो की घातक बीमारी है। वे कई बार अन्य दलों के नेताओं के साथ भी अपनी फोेटो खिचाकर सोषल मीडिया पर वायरल करने के आदी हो गए है। उन्होने मेट्रो अस्पताल के बाहर फोटो खींचाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया। खास बात ये है कि इस काम में कई जिम्मेदार पदाधिकारी भी शामिल हुए।
हालांकि हाल ही में कॉग्रेस ने नोएडा का महानगर का अध्यक्ष पार्टी के कार्यकर्ता शहाबुद्दीन को बनाया है। सहाबूददीन दिखावे के लिए झुग्गी में रहते है। राजनीति के जानकारों का कहना है कि उन्हें पार्टी की कार्यकारिणी के गठन पर ध्यान देना चाहिए। लेकिन वे भी कुछ हवाबाज कार्यकर्ताओं को चंगुल में फंसते दिख रहे है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नोएडा में राजनीति करने वाले अधिकांश कार्यकर्ता व्यवसायिक दृष्टिकोण रखते हैं। यही वजह है कि यहां नेतागिरी कम व्यापारीकरण अधिक हैं।
दो बार कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े चुके एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता का भी मानना है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं को संयम रखना चाहिए। रॉबर्ट वाड्रा यहां इलाज कराने के लिए आए थे। उन्हें आराम की सख्त आवश्यकता थी। ऐसी स्थिति में पार्टी के कार्यकर्ताओं को उनके निजी अस्तित्व का ख्याल रखना चाहिए था। पार्टी के जिम्मेदार कार्यकर्ताओं को यदि कहा गया होता तो उन्हें जाना चाहिए था। ऐसी स्थिति हास्यास्पद बनती है। इनका मानना है कि विरोधी दलों के नेताओं के साथ ही कांग्रेस की विचारधारा से इत्तेफाक नहीं रखने वाले लोगों को ऐसे मामलों के बाद विरोध करने का मौका मिलता है। इसलिए पार्टी के कार्यकर्ताओं को पार्टी की नीतियों का प्रचार प्रसार करने के साथ ही संगठन को मजबूत करने पर ध्यान देना चाहिए ना कि फोटोफोबिया पर।
नेताओं को हुआ फोटो फोबिया, बीमार रार्बट को भी नहीं बख्सा