महाराष्ट्र के मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य को समझने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना होगा। महाराष्ट्र्र प्रदेश के गठन के साथ पारवारिक विरासत मे मिली राजनीति की सियासतदारी का सपना पालने वाली शिवसेना संगठन के तौर पर शुरू हुआ। इसके बाद ये एक सशक्त राजनीतिक दल के तौर पर महाराष्ट्र में स्थापित हुआ। बाला साहेब ठाकरे की सोच हिंदू मराठाओं को साथ लेकर राजनीति करने की थी। वे अपनी स्पष्टवादिता के साथ अपने चाल चरित्र के लिए भी देश की राजनीति में याद किए जाते रहेंगे। इसी के अनुरूप उन्होने अपनी शिव सेना और दूसरे राजनीतिक दलों को नियंत्रित करने की कोशिश की। लेकिन जब दूसरे दलों ने उनको और उनकी विचारधारा को अनसुना किया तो शिव सेना अपने मराठावादी ंिहदू कटटरवाद के विचार उनके मुख पत्र सामना में मुख्य खबरों के रूप में सामने आने लगे। जो निरंतर जारी है।
मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य के बाद शिव सेना के राष्ट्रीय प्रवक्ता संजय राउत द्वारा चैटाला परिवार की मजबूरी को विषय बनाकर केंद्रीय भाजपा नेतृत्व पर तंज कसा गया है। ये सिर्फ एक तंज नहीं बल्कि सियासी पटल पर देश की सबसे बड़ी सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा को एक खतरे की घंटी है। शिवसेना की अगुवाई में 1995 में महाराष्ट्र में शिव सेना नेता मनोहर जोशी ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। जब तक बालासाहब ठाकरे मनोहर जोशी को हांक सके तब तक सब ठीक था। लेकिन जब जोशी ने उन्हे अनसुना करना शुरू किया तो ठाकरे साहब ने मनोहर जोशी को सीएम की कुर्सी से बेदखल कर नारायण राणे को मुख्य्मंत्री पद पर आसीन कर दिया।
मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में अब शिव सेना भाजपा के सामने अडकर खडी हो गई है। उसे सीएम का पद चाहिए। जानकारों की बात पर ऐतबार करें तो महाराष्ट्र में तोड फोड की राजनीति की बिसात बिछ चुकी है। भाजपा सांसद संजय कांकडे का ब्यान इस बात की तस्दीक कर रहा है कि शिव सेना के 45 विधायक भी भाजपा के संर्पक में है। देखना दिलचस्प होगा कि महाराष्ट्र में उंट किस करवट बैठता है।
ये शिव सेना ठाकरे की नीतियों पर चलने वाली पार्टी है।
महाराष्ट्र मे राजनीतिक वर्चस्व की लडाई चरम पर