आम चुनावों के बाद इस तरह के चुनाव परिणाम से ज्यादा जनता के मूड का संकेत देते हैं। दोनों राज्यों की जनता ने भाजपा को नकारा नहीं है बल्कि यह बताने की कोशिश की है कि उसे लोकतंत्रवादी होना चाहिए। बिखरे विपक्ष के बावजूद अपने अतिवादी लक्ष्यों को प्राप्त करना तो दूर सत्ता की ड्यौढ़ी तक पहुंचने के लाले पड़ गए। जोड़.तोड़ से सरकार बनाना और कभी पसंद न आने वाले साथियों पर निर्भरता की विवशता लोकतंत्र के ही अलग अलग पहलू हैं परंतु दिग्विजय का जुनून लोकतंत्र की भावना के विरुद्ध ही है। दोनों ही राज्यों में समीकरणों के कई कार्ड ;हिन्दुत्वए मुस्लिमए मराठा आदिद्धफेल रहे। मुस्लिम मतदाता ने जहां मौका लगा भाजपा को ढहाने में कोई गलती नहीं की। मुस्लिम महिलाओं के रुख से संबंधित कोई जानकारी अभी नहीं आई है हालांकि तीन तलाक़ मुद्दा पूरे शबाब पर है। उत्तर प्रदेश विधानसभा उपचुनावों में बसपा सफल नहीं हुईए कांग्रेस की तो उम्मीद ही नहीं थी। बिहार में राजद के उम्मीदवारों की जीत से दो परिणाम प्राप्त हुए। एकए नितीश और भाजपा के रिश्तों में ठंडक का असर नीचे तक पहुंच रहा है।दूसराएराजद लालू परिवार के असर से बाहर निकल कर खुद खड़ी हो रही है। हालांकि अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए अभी से किसी प्रकार के मंसूबे बांध लेना मूर्खता होगी। पंजाबए केरल के नतीजे अपेक्षित ही हैं जबकि तमिलनाडु में अन्नाद्रमुक की जीत ने द्रमुक और दूसरे दलों को सोचने पर जरूर विवश किया होगा। एक बड़ी बात यह कि इस बार ईवीएम बदनाम होने से बच गयी चाहे भाजपा को थोड़ा झटका लगा।;सआभार राजेश बैरागी जी संपादक नेक दृष्टि हिंदी साप्ताहिक नौएडा।
हरियाणा महाराष्ट्र चुनावः सरकार तो बन ही जाएगी परंतु